पैन कार्ड, बैंक के कागज, भू-राजस्व की रसीद नागरिकता का सबूत नहीं: HC

  • HC ने एक महिला का नागरिकता का दावा खारिज किया

  • महिला ने कोर्ट के समक्ष करीब 15 दस्तावेज पेश किए थे



गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक महिला का नागरिकता का दावा खारिज कर दिया है. महिला ने बैंक पासबुक, वोटर लिस्ट, पैन कार्ड, भू-राजस्व रसीद जैसे 15 दस्तावेज पेश किए थे, लेकिन कोर्ट ने इन कागजों को नागरिकता का आधार नहीं माना.


गुवाहाटी हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के जस्टिस मनोजीत भूयान और पार्थिवज्योति सैकिया ने जाबेदा बेगम की याचिका खारिज कर दी. जाबेदा बेगम असम के बक्सा जिले की रहने वाली हैं. बक्सा जिले के थाना तमुलपुर के अंतर्गत आने वाले गुवाहारी गांव की जाबेदा बेगम उर्फ जाबेदा खातून पत्नी रजक अली ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.


असम की ​एनआरसी की प्रक्रिया के तहत फॉरेन ट्रिब्यूनल ने उन्हें विदेशी घोषित किया था, जबकि उनका दावा है कि वे जन्म से भारतीय हैं. जाबेदा बेगम ने फॉरेन ट्रिब्यूनल के उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसके तहत उन्हें विदेशी घोषित किया गया.


जाबेदा का दावा है कि वे बंगालपारा में पैदा हुईं और उनके पिता का नाम जाबेद अली और मां का नाम जहूरा खातून था. नदी के तटबंध के कटाव के कारण उनके पिता बंगालपारा से आकर गांव नंबर 2 डोंगरगांव में बस गए और अपनी मृत्यु तक वहीं रहे.


2015 की वोटर लिस्ट में है भाइयों का नाम


उनका यह भी दावा है कि उनके माता-पिता का नाम 1966 की वोटर लिस्ट में है. उनके दादा-दादी का नाम भी 1966 की वोटर लिस्ट में है. इसके अलावा उनके पिता का नाम 1970 और 1997 की भी वोटर लिस्ट में है. जाबेदा ने यह भी दावा किया ​कि उनके माता-पिता के साथ दो भाई सम्सुल अली और इंसान अली का नाम 2015 की वोटर लिस्ट में है.


जाबेदा ने कोर्ट के समक्ष यह भी कहा कि उनके तीन भाई हैं, इंसान अली, खैरुल अली और सम्सुल अली. दो बहनें हैं जिनके नाम हैं, मरजीना बेगम और तारावनु बेगम. जाबेदा की शादी रजक अली के साथ हुई थी जिसके बाद उनका नाम 2008 की वोटर लिस्ट में आया था.


उनका यह भी कहना है कि 1997 की वोटर लिस्ट में भी उनका नाम आया था, लेकिन इसे संदेहास्पद मतदाता ('D' Voter) के तौर पर मार्क किया गया था. जाबेदा बेगम ने एनआरसी डिटेल्स के साथ पैन, राशन कार्ड, वोटर लिस्ट, भू-राजस्व की रसीद, बैंक अकाउंट डिटेल्स जैसे 15 कागजात ​कोर्ट के समक्ष पेश किए थे. उन्होंने गांव के ​मुखिया के बनाए दो प्रमाणपत्र भी पेश किए थे कि उनके पिता जाबेद अली गांव नंबर 2 डोंगरगांव के स्थायी निवासी हैं और जाबेदा बेगम जाबेद अली की बेटी हैं.


क्या है हाईकोर्ट का फैसला


हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है 'इस मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह दिवंगत जाबेद अली और जहूरा खातून की बेटी हैं. वो कोई ऐसा दस्तावेज पेश नहीं कर सकीं जिससे उनके और उनके माता-पिता के साथ संबंध स्थापित होता हो.'


आगे कोर्ट ने कहा कि यह कोर्ट बाबुल इस्लाम बनाम भारत संघ मामले में पहले ही फैसला दे चुकी है कि पैन कार्ड और बैंक अकाउंट नागरिकता के सबूत नहीं हैं. मोहम्मद सम्सुल अली को याचिकाकर्ता का भाई बताया गया है, उन्होंने ट्रिब्यूनल के सामने सबूत पेश किए. उनका दावा है कि उनकी उम्र 33 साल है और उनका नाम वोटर लिस्ट में 2015 में आया. याचिकाकर्ता कोई ऐसा दस्तावेज नहीं दे पाईं जो उनके कथित भाई सम्सुल अली से उनका संबंध स्थापित करता हो. भू-राजस्व भुगतान की रसीद किसी व्यक्ति की नागरिकता साबित नहीं करती है. इसलिए, हम पाते हैं कि ट्रिब्यूनल ने इससे पहले रखे गए साक्ष्यों की सही ढंग से जांच की है और हम ट्रिब्यूनल के निर्णय में कोई खामी नहीं देख रहे हैं.'


मुखिया के प्रमाणपत्र को भी साक्ष्य नहीं माना


कोर्ट ने गांव के मुखिया के प्रमाणपत्र को भी साक्ष्य नहीं माना और कहा कि 'एक गांव के मुखिया द्वारा जारी प्रमाण पत्र कभी भी किसी व्यक्ति की नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता है. इस तरह के प्रमाण पत्र का उपयोग केवल किसी विवाहित महिला द्वारा किया जा सकता है ताकि यह साबित हो सके कि उसकी शादी के बाद वह अपने वैवाहिक गांव में स्थानांतरित हुई थी.'


गौरलतब है कि असम में एनआरसी की प्रक्रिया के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की इजाजत दी थी कि कोई विवाहित महिला अपने माता-पिता से अपने संबंध के सबूत के तौर पर गांव के मुखिया द्वारा बनाए गए प्रमाणपत्र को पेश कर सकती है. असम में एनआरसी की फाइनल लिस्ट 31 अगस्त, 2019 को जारी हुई थी जिसमें 19.6 लाख लोगों को एनआरसी में शामिल नहीं किया गया है.


गुवाहाटी हाईकोर्ट के वकील बुरहानुर रहमान का कहना है कि जाबेदा दस्तावेज जमा करके अपने माता-पिता से अपना संबंध साबित नहीं कर सकीं. उन्होंने बताया, 'दुर्भाग्य से माता-पिता से संबंध दर्शाने वाले दस्तावेज आदेश के अनुसार सही तरीके से नहीं दिए गए थे. उन्होंने गांव के मुखिया का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया और गांव का मुखिया ट्रिब्युनल के सामने पेश हुआ था. यह सही तरीके से नहीं हुआ. वे अब भी सुप्रीम कोर्ट से आशा रख सकती हैं.'!